चाहत मंजिलों की

जब भी देखूँ उड़ता पंछी।
ये दिल मेरा खिल जाता है॥
आँखों में आती इक चमक।
ये पागल दिल मुस्काता है॥

नहीँ है मुश्किल इस दुनियाँ में।
अपनी मंज़िल को पा जाना॥
जिसके देखे रातों को सपने।
उस हसरत को पूरी कर जाना॥

यदि लगे रहे तुम लगन भाव से।
तो निश्चित ही मंज़िल को पाओगे॥
सारे विरोधी बस ताकेंगे रस्ता।
तुम सबको ही चित्त कर जाओगे॥

माना कि तुम हो शरारती।
बात बात पर इठलाते हो॥
कोई ना माने जो कहना तेरा।
तुम उस पर गुस्सा हो जाते हो॥

दिल के नहीँ हो बुरे तनिक भी।
फिर भी तुम रौब दिखाते हो॥
जानता हूँ ये कोई रौब नहीँ है।
तेरे प्यार की इक गहराई है॥
जिसमें छिपा है अपार स्नेह।
ये ऐसी ही इक परछाई है॥