दशरथ माँझी

एक गरीब व्यक्ति जिसमे जिद थी अपार
मुश्किलों के आगे न मानी उसने हार
मन में दृढ़ संकल्प लेकर उसे पूरा किया
पर्वत की छाती चीरकर उसने मार्ग बना दिया
अपने सच्चे प्रेम की खातिर बाइस वर्षों को कुर्बान किया
अपनी पत्नी की फाल्गुनी की याद मे गिरि को भी काट दिया
पहले तो उसका लोगों ने बहुत मज़ाक बनाया
पत्नी के ग़म मे डूबा सिरफिरा पागल बताया
लेकिन कभी न हिम्मत हारी उसके जज़्बातों ने
शिखर से मार्ग निकाला उसके कई प्रहारों ने
छेनी और हथोड़े को उसने अपना मीत बनाया
इन दोनों की चोट से तीन सौ फीट लंबा रास्ता बनाया
माँझी की इस कोशिश को पूरी दुनिया ने सराहा
दशरथ को माउंटेनमैन की उपाधि से पुकारा
जब होता मन में किसी के लिए सच्चा प्यार
जो असंभव है वो भी हो जाता है साकार।