काश धीरज साहू 'मानसी' काश वो अल्फ़ाजो में ढल गए होते,तो अहसास रूह से निकल गए होते।काश, हो जाता ज़रा मौसम रूमानी,तो, हालात दिल के, बदल गए होते।सीने में वो दिल रखते है पत्थर नहीं,वक़्त के साथ वो भी पिघल गए होते।इश्क़ ने आख़िर, किसको है बख्शा,अरमान थे एक रोज़ मचल गए होते।काश, सीरत देखता जहां सूरत नहीं,तो खोटे सिक्के हाट में चल गए होते।काश बन जाते वो जीने का सहारा,तो मुमकीन था, हम संभल गए होते।