गुरु दक्षिणा

जीवन है एक कठिन सफ़र
तुम पथ की शीतल छाया हो,
अज्ञान के अंधकार मे
ज्ञान की उज्जवल काया हो।

तुम कृपादृष्टि फेरो जिस पे
वह अर्जुन सा बन जाता है,
जो पूर्ण समर्पित हो तुममे
वह एकलव्य कहलाता है।

जब ज्ञान बीज के हृदय ज्योति से
कोई पुष्प चमन में खिलता है,
मत पूछो उस उपवन को
तब कितना सुख मिलता है,
हर सुमन खिल उठे जीवन का
यह सुंदर ध्येय तुम्हारा है,
कर्तव्य मार्ग की बाधा से
नित तुमने हमें उबारा है ।

किन्तु सच्चाई के विजय ज्ञान की
जो कहती हमें कहानी है,
आज भला उन आँखों से
छलक रहा क्यों पानी है !

पीड़ा का आँसू बोल पड़ा
धीरज के बंधन तोड़ पड़ा,
जिनको सिखलाया सदाचार
वो अनाचार के साथ चल रहे,
जिनको दिखलाया धर्म मार्ग
वो अधर्म मार्ग की ओर बढ़ रहे ।

कैसी है ये गुरु भक्ति !
और कैसी है ये गुरु दक्षिणा ?
यह सोच रही उन आँखों मे
एक दर्द भरी हैरानी है।

यदि शाप ग्रस्त इस धरती को
पाप मुक्त कर देना है
तो छोड़ अधर्म की राह तुम्हें
सत्पथ पर चल देना है।

सत्य धर्म की राह पर
तुम जितने कदम बढ़ाओगे,
हमसे मिली शिक्षा का
तुम उतना मान बढ़ाओगे।

बस यही है सच्ची गुरुभक्ति
और यही हमारी गुरु दक्षिणा
बस यही है सच्ची गुरुभक्ति
और यही हमारी गुरु दक्षिणा ।।

“गुरु” अर्थात अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाला, अज्ञान का नाश करने वाला । गुरु जीवन यात्रा मे पथ प्रदर्शक है,बिना गुरु के यात्रा संभव नहीं है, गुरु अपने ज्ञान का अप्रतिम अंश शिष्य को देकर समाज के लिए नयी संभावनाओ के द्वार खोलता है । गुरुओं द्वारा दिखाये गए मार्ग का अनुसरण ही सच्ची गुरु दक्षिणा है।