कथा कहानी

कभी माता पिता से, कभी दादी नानी से, कभी गुरुओं से, कभी मित्रों से ना जाने कितनी कहानियां हमने सुनी है और कही हैं । जीवन पर्यंत हम कहानियों से घिरे ही रहते हैं । मानव सभ्यता के आरंभ से ही कहानियां किसी न किसी स्वरूप में विद्यमान रही हैं । कहानियों के माध्यम से मानव संस्कृति में संस्कारों की परंपरा का अद्भुत विकास होता रहा है । प्राचीन भारत में कहानी का मूल कथाएं रही हैं और कथाओं की बृहद और सम्पन्न परंपरा रही है । आधुनिक समय में कहानी गद्य साहित्य की ही एक विधा है जो मूल रूप में कथात्मक गद्य है अर्थात जिस रचना में कथा का ढाँचा हो, कुछ घटनाएँ तथा चरित्र हों तथा जो आकार में लघु हो, सामान्यतः उसे ही कहानी कह दिया जाता है। कहानी और कथा में मूल अंतर न तो आकार का है, न भाषा का और न ही उनमें विद्यमान तत्वों का । इनमें अंतर दृष्टिकोण का है । जहाँ कथाओं में आदर्शवादी और नैतिकतावादी दृष्टिकोण केन्द्र में होता है, वहीं आज की कहानी में यथार्थवादी दृष्टिकोण की प्रमुखता दिखाई पड़ती है । आधुनिक कहानी में आदर्शों व कल्पनाओं से यथासंभव दूरी रखी जाती है । पारंपरिक कथाओं का मूल उद्देश्य नैतिक शिक्षा प्रदान करना होता था । इसलिए हर कथा के अंत में बताया जाता था कि इससे क्या शिक्षा मिलती है? उस शिक्षा को ध्यान में रखते हुए ही कथाकार घटनाओं व पात्रों का जाल बुनता था । वह घटनाओं को एक निश्चित क्रम में इस प्रकार रखता था कि कथा के अंतिम बिन्दु पर वह नैतिक शिक्षा नाटकीय प्रभाव के साथ श्रोता या पाठक के समक्ष मुखर हो जाए । इस प्रकार की कथाओं में देश-काल की प्रामाणिकता का दबाव कम होता था और अविश्वसनीय तथा काल्पनिक घटनाओं को भी पर्याप्त महत्त्व मिलता था ।
काव्य अपराजिता के कथा-कहानी खंड का उद्देश्य नए लेखकों की कहानियों और कथाओं का संकलन कर पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करना है ।

कथा कहानीकार

  • देवेंद्र प्रताप वर्मा ‘विनीत’
  • मोहन लाल अरोड़ा