आज ! प्रिए श्रृंगार करो तुम

आज ! प्रिए श्रृंगार करो तुम।
नभ पर बादल घनतम छाए,
बूँद – बूँद झरि जल बरसाए,
मृदुल भावनाओं में डूबा
मन चाहे मनुहार करो तुम।
आज प्रिये ! श्रृंगार करो तुम ।।

प्रति पल पावन प्रीति प्रहर्षे,
प्रतन प्रणोदित पुरवा परसे,
कब से विकल प्राण मम प्यासा
निज बहियाँ गलहार करो तुम।
आज प्रिए ! श्रृंगार करो तुम ।।

कुसुम कली कर को फैलाती,
भ्रमित भ्रमर की प्यास बुझाती,
प्रमुदित प्रगट पीर प्राणो की,
प्राण प्रिए ! अधिकार वरो तुम।
आज प्रिए ! श्रृंगार करो तुम ।।

युग-युग की यह रीति बताती,
पागल पीर प्रीति पतियाती,
हर लें हिल-मिल पीर हृदय की,
प्रणय-प्रीति-आधार गहो तुम।
आज प्रिए ! श्रृंगार करो तुम ।।

प्रिय ! बन गंध साँस में घुल जा,
साँस-साँस बन मुझमें मिल जा,
“मोही” प्रबल पीर की प्रतिमा
मदिर-मदिर उपचार करो तुम।
आज प्रिए ! श्रृंगार करो तुम ।।