मुसाफिर

पर कटे हैं, इसलिए उड़ता नही हूँ
हूँ मुसाफिर, अंततः रुकता नही हूँ ।

बौर आए हैं, टहनियाँ भी झुकी हैं,
मैं टिकोरा हूँ, अभी झड़ता नही हूँ ।

खाद-पानी की जरूरत, सख्त मुझको,
मैं किसी तूफान से, डरता नही हूँ ।

मैं न मिट्टी का खिलौना, दोस्त मेरे,
मैं किसी बाजार में, बिकता नही हूँ ।

प्रज्ज्वलित मैं दीप, जलता रात भर हूँ,
भोर के पहले कभी, बुझता नही हूँ ।

नाम है “मोही” कि ‘सागर’, ज्वार हिय में,
मैं किसी प्रतिबंध में, बँधता नही हूँ ।