पत्थर के हुए हम अमर नाथ सिंह ‘मोही’ हर गम को झेल आखिरपत्थर के हुए हम,खुशियाँ रहीं न खुशियाँग़म भी रहे न ग़म ।मुझको मृदुता के साथ जीना हैमेरी पूँजी भी श्रम-पसीना है,कणुवे सच हैं कि गम अनेकों हैंविष भी अमृत की तरह पीना है ॥स्वप्न का कुछ भी ऐतबार नहीटूट जाए, वो नेह-तार नही,दिल की धड़कन में आ बसे हो तुमअब किसी का भी इंतजार नही ॥मेरी किस्मत सवाच लेना तुमदर्द-ए-तन्हाई में साथ देना तुम,आँधी-तूफाँ को तो थाम लूँगा मैं“सिंधु” लहरें तो थाम लेना तुम ॥भूल न कोई ऐसी करनाजाने या अनजाने में,सारी उम्र गुजर जाती है,रूठा मीत मनाने में ॥