पत्थर के हुए हम

हर गम को झेल आखिर
पत्थर के हुए हम,
खुशियाँ रहीं न खुशियाँ
ग़म भी रहे न ग़म ।

मुझको मृदुता के साथ जीना है
मेरी पूँजी भी श्रम-पसीना है,
कणुवे सच हैं कि गम अनेकों हैं
विष भी अमृत की तरह पीना है ॥

स्वप्न का कुछ भी ऐतबार नही
टूट जाए, वो नेह-तार नही,
दिल की धड़कन में आ बसे हो तुम
अब किसी का भी इंतजार नही ॥

मेरी किस्मत सवाच लेना तुम
दर्द-ए-तन्हाई में साथ देना तुम,
आँधी-तूफाँ को तो थाम लूँगा मैं
“सिंधु” लहरें तो थाम लेना तुम ॥

भूल न कोई ऐसी करना
जाने या अनजाने में,
सारी उम्र गुजर जाती है,
रूठा मीत मनाने में ॥