वो लड़कियां

गोल रोटी के साथ
सेंक देती हैं तवे पर
अपने सुनहरे कल के सपने।
किताबों को रख
दराजों में
सजाया करतीं हैं
घर की अलमारियां।

बुलंदी पाने की
चाहत में पलीं
अब झाड़ू से
नापने लगीं हैं
छतों की जालियां।

देखता नहीं कोई
पूछता नहीं कोई
छटपटाहट में काट लेतीं
जब सब्जियों संग उंगलियां।