मैं और मेरे ख्याल

आपको ही सोचते सोचते
वक्त निकल जाता है।
रहूँ बेशक महफिलों में
कितना मगर फिर भी मेरा।
ये दिल मुझे हरदम हरपल
मायूस ही नजर आता है॥

जानता हूँ है जमाने में मुझे
समझने वाला कोई भी नहीं।
फिर भी ना जानें क्यों हर बार
मेरा ये बेताब सा दिल।
खुद से ज्यादा जमाने पर
बेहिसाब यकीन कर जाता है॥

नहीं है रंज गम कोई मुझे
ना ही खुद से मैं हारा हूँ।
रही हो भीड़ चाहे जो मगर
मैं खुद ही का सहारा हूँ॥

मिलेगा वक़्त जो हमको
तो हम तुमको बतायेंगे।
सुलगती आग है दिल में
वो हम तुमको दिखायेंगे॥

ना खुद से ही छुपायेंगे
ना तुम से ही छिपायेंगे।
जिगर का जो भी है मंज़र
वो तुमको ही दिखायेंगे॥

नहीं होता हूँ मैं क्रोधित
कोई जब अपशब्द कहता है।
जानता हूँ है जिगर ये तेरा
इसमें बस तू ही रहता है॥

मेरी साँसों में घुलकर ही
तेरे अहसास आते हैं।
तेरे दिल में है भला कोई
ये वो मुझको बताते हैं॥

नहीं मुझसे छिपाते हैं
ना हीं वो मुझसे चुराते हैं।
तेरी आँखों के दोनो पुतले
मुझे हर राज दिखाते हैं॥

भले हो भीड़ कितनी भी
मगर मैं तुझको ही चाहूँगा।
तेरे हर इक छोटे से संकट पर
सदा मैं जाँ लुटाऊँगा॥

जमाने का दौर हो कोई
मैं सदा तुझको ही चाहूँगा।
मैं तुझको ही चाहूँगा
जिगर में तुझको ही बसाऊँगा॥