एक सास दो बहु दीपक अवस्थी 'बंसीधर' एक बहु मेरी मात की, बढ़िया पहिरे खाय।दूजी बहु रखते कदम, बेटा लै गई उड़ाय॥ बेटा लै गई उड़ाय, सास दोनों की थी एक।एक कहै सासू लटी, एक बता रही नेक॥ एक बता रही नेक, बात किसकी फिर सच्ची।जो करे प्रेम की बात, सास-बहु वही है अच्छी॥ हावी हुआ पाश्चात्य, बदला हर एक फसाना।कहे ‘बंसीधर’ आज, सुनो उल्टा है जमाना॥