मैं नारी हूँ

मैं नारी हूँ,
नर की पूरक,
जैसे एक वृक्ष की
दो शाखाएँ
जिनका मूल एक है,
बस दिखती हैं
अलग-अलग,
बाहें फैलाए
नव प्राण, नव चेतना
की फुलवारी हूँ,
मैं नारी हूँ।

मैं नारी हूँ,
त्याग, समर्पण,
ममता, करुणा,
धैर्य, धरा,
अस्तित्व हूँ,
अस्तित्व का
अस्तित्व भी हूँ,
पर ढूँढती हूँ
अपना ही अस्तित्व
नर के सम्मुख,
कैसी विडंबना की मारी हूँ,
मैं नारी हूँ।

मैं नारी हूँ,
शक्ति हूँ,
प्रेम हूँ, भक्ति हूँ,
युगों से पूजा है,
श्रद्धा कहा है,
विराजमान हूँ
सर्वोच्च स्थान पर,
मेरे सिवा और
नहीं कोई दूजा है,
जो रहता हो
इतने ऊँचे मुकाम पर,
फिर भी नर
तेरे झूठ, फरेब
और अहम से हारी हूँ,
मैं नारी हूँ।