तुम्हारे ही खातिर हैं हम देवेंद्र प्रताप वर्मा 'विनीत' जिस राह पे तुमने रखा कदम है,उस राह के भी मुसाफिर हैं हम।अपनी वफा के काबिल तो समझिए,उम्र भर साथ चलने को हाजिर हैं हम।तन्हा सफर जल्दी कटता नहीं है,हवाओं का रुख यूँ बदलता नहीं है;खुदा ने मेरे बस यही है कहा,हर सफर मे तुम्हारे ही खातिर हैं हम।साथ दोगे हमारा तो एहसान होगा,तुम्हारी मोहब्बत मेरा ईमान होगा;छोड़ दो मुझको तन्हा या आबाद कर दो,हर सितम आज सहने को हाजिर हैं हम।बातें नही ये दिल के बेचैन से जज़्बात हैं,मुद्दत से हसरतों की तन्हाइयों के साथ है।अब तो कोई बंदगी का रहनुमा मिले,जमाने की नजर मे कब से काफिर हैं हम।