इश्क़ देवेंद्र प्रताप वर्मा 'विनीत' लोग कहते जिसे मेरी दीवानगीवो तेरे इश्क़ की इंतहा है सनम।तुम भी गर इसे आवारगी का नाम दे दोगेरहनुमा कोई इश्क़ का मेरे बाद न होगा।मेरे आँसुओं से पूछो क्या खूब जिंदगी हैतेरी आरजू की लौ में जलती हर एक खुशी है।साथी हजार होंगे चाहत के कारवां मेंकोई हमसफर न हो तो बेआस जिंदगी है।तूफान के सहारे साहिल पे आ गए हैंपतवार से तो बेहतर तूफ़ां की बंदगी है।शहर की गलियों में कितने आईने टूटे पड़े हैंफिर भी लोग कर रहे पत्थरों से दिल्लगी है।