इम्तिहान देवेंद्र प्रताप वर्मा 'विनीत' हर पल एक नया इम्तिहान लेके आया हैवक़्त ठोकरों भरा इनाम लेके आया है।कदम रुक जाएंगे ऐसी तो कोई बात नही हैहर मोड़ पर मंजिलों का पैगाम लेके आया है।अब सोचता हूँ शर्म से नजरें झुकाये क्यों चलूँइसी राह पर चलने का जब फरमान लेके आया है।इस धूप की बिसात क्या मंजर जला सकेसहराओं में बारिश का इंतजाम लेके आया है।