ये मगर कैसे कहूँ

ये चाहते हैं सब कि उसको भूल जाऊँ मैं मगर
भूल कर उसको मैं खुद को याद भी कैसे रखूँ ।

उस हसरते गुलफाम की मंजिल नही मै,जानता हूँ
वो नही मेरी नजर में,ये मगर कैसे कहूँ।

मुश्किलें ही बख़्शी हैं इस जहाँ की रहमतों ने
छोड़ कर तन्हा उसे किसी राह पर कैसे चलूँ।