ये मगर कैसे कहूँ देवेंद्र प्रताप वर्मा 'विनीत' ये चाहते हैं सब कि उसको भूल जाऊँ मैं मगरभूल कर उसको मैं खुद को याद भी कैसे रखूँ ।उस हसरते गुलफाम की मंजिल नही मै,जानता हूँवो नही मेरी नजर में,ये मगर कैसे कहूँ।मुश्किलें ही बख़्शी हैं इस जहाँ की रहमतों नेछोड़ कर तन्हा उसे किसी राह पर कैसे चलूँ।