हार जाएगा देवेंद्र प्रताप वर्मा 'विनीत' देखते ही देखते गुजर गई जिंदगानीअब अधूरी ख्वाहिशों से कैसे पार पायेगा।अपने ह्रदय में ही जगह नही मिली तुझेअब किस घर का द्वार खटखटाएगा।जो था जरुरी तू उसे ही टालता रहाबाकी सब किया धरा बेकार जायेगा।सबके के सम्मुख रहा खुद से विमुख रहाजीत कर भी आखिर में सब हार जायेगा।