अबके बरस देवेंद्र प्रताप वर्मा 'विनीत' अबके बरस जिंदगी कुछ इस तरह रोशन करो,प्यार के इस कारवां मे नफ़रतों के नाम न हो।हर कोई अपना सा है बेगानों के इस शहर मे,साज छेड़ो दोस्ती के दुश्मनी की बात न हो।क्या खुशी क्या बेबसी सब वक़्त की सौगात है,मुस्कुराना दिन है तो आँसू बहाना रात है।हर ग़म खुशी के आगे मजबूर हो सकता है,बस जिंदगी के इस सफर मे ग़म कोई सामान न हो।कह रहें हैं रास्तों मे बिखरे हुए पत्थर यहाँ,ठोकरें खाकर वो कितनी दूर तक आ पहुंचे हैंमुश्किलों से भागकर रोना नहीं है ज़िंदगी,आगे बढ़ो इस तरह की कोशिशें नाकाम न हों।