विनीत मन देवेंद्र प्रताप वर्मा 'विनीत' घर आओगेउसने पूछा नहीकुछ बात है।गुमसुम सीकेश खुले-बिखरेहां नाराज़ है।स्नेह की कलीविरह के नभ कीधूप में खिली।मुरझाई सीह्रदय से लिपटहरी हो गई।अनुपम हैरूठने मनाने मेंजो मिठास है।बिखरे हुएसुर मृदुभाव केलय बद्ध हैं।“विनीत” मनगीत रच प्रेम केकरबद्ध है।