प्रेरणा

सूरज की किरणों का कलियों से नाता क्या है,
प्रीत की पवित्र पावन प्रेरणा से पूछना।
धरती की पीड़ा समझे बादलों का देश कैसे,
सावन मन-भावन सुहावन से पूछना।

नम है नयन किन्तु मन है प्रसन्न क्यों,
कमनीय कामिनी की कामना से पूछना।
चेतना का रवि निस्तेज क्यों है गगन मे,
करबद्ध कविता की भावना से पूछना ॥

कितना अनोखा है ये जीवन का खेल देखो,
धरती भी झूम रही अंबर भी झूम रहा।
बुझते दिये की लौ तेज हो गयी है जैसे,
किरणों का पुंज नए आगमन को पूज रहा।

इठलाती नदी मिली सागर से जा के जब,
वारिधि का रूप धर अंबर को चूम रहा।
कितने ही दृश्य यहाँ बिखरे हैं जीवन के,
सिर को झुकाये तू किस प्रेरणा को ढूंढ़ रहा ॥