रणभेरी

बज उठी समय की रण-भेरी,
अब रण कौशल की बारी है;
हार मिले या जीत मिले,
कर्तव्य प्रथा ही प्यारी है।
साहस किसमे है कितना,
किसमे कितना विश्वास भरा;
इस महासमर मे उठती,
प्रश्नो की पावन चिंगारी है।

प्रतिभाओं के सूर्य कई हैं,
कई सितारों के साथी;
आगे बढ़ पाऊँगा कैसे,
जुगनुओं का मै बाराती।

अपने महिमा मंडन को,
बहुत किया है व्यर्थ प्रलाप;
सार्थक करने सार्थकता को,
करना होगा “वार्तालाप” ।

है “असमंजस” मे चित्त मेरा,
चिंता मे चित न हो जाऊँ;
“हल्ला बोलूँ” किस कौशल से,
किस कौशल से सम्मुख आऊँ ।

है “प्रस्तुति” परमार्थ की,
परमार्थ इसका पूर्ण है;
शील साहस धैर्य से,
अब मन मेरा सम्पूर्ण है।

साथ लिए टिम टिम जुगनू की,
मै आगे बढ़ता जाता हूँ;
लौ निचोड़ अपनी सारी,
मै सूरज से टकराता हूँ।

बुद्धि विवेक का अवलोकन हो,
या प्रश्नो का हो प्रहार;
अति-विनीत हो सबका मै,
प्रत्युत्तर देता जाता हूँ।

तन्मयता की ऐसी छवि पर,
सोच मे पड़ा विधाता है;
मैंने लक्ष्य को साधा है,
या लक्ष्य ने मुझको साधा है।

हार हो या जीत हो,
बस युद्ध करने का जुनून है;
जब तक रहूँ मर्यादित रहूँ,
फिर बिखर जाऊँ शुकून है।

है “अपूर्व” “शोभित” “अनंत”,
इस महासमर की कांति किरण;
चहुंदिश चंचल चातुर्य लिए,
स्वच्छंद विचरता ख्याति हिरण।

उस “बागेश्वर” की बाग के,
हम “पल्लव” हैं “प्रतीक” हैं;
“अभिषेक” कर प्रकाश से
जिसने दिया सादर शरण॥