निखारो तुम देवेंद्र प्रताप वर्मा 'विनीत' राह तकें हैंचूड़ी झुमके लालीबिंदी पायल ।पहरेदारप्रेम के विरह मेपाषाण से हैं ।चाँद सताएसितारों की लड़ियांअंगार सी हैं।बिखरी लटेंउलझी भटकतीपलकें छुए।रूठे काजलहवाओं पे बिफरेधीमे बहो री।कांतिहीन हैसाज श्रृंगार सबनिखारो तुम।