जीवन साथी देवेंद्र प्रताप वर्मा 'विनीत' अंतर्मन की अभिलाषा केकिरणपुंज तुम जीवन साथीकब आओगे सम्मुख मेरेइतना कह दो जीवनसाथी।देख रहा है पागल मनभीगी भीगी अँखियों सेस्वप्न महल को छोड़ धरा परआ जाओ तुम जीवनसाथी।औरों की खुशियों में शामिलमाना कि हँस लेता हूँअब मेरी खुशियों की रौनकबन जाओ तुम जीवन साथी।इस निर्मम संसार के तम मेजाने कब छिप जाऊंकिसलय जीवन की कान्ति लिएआ जाओ तुम जीवन साथी।कोई सागर के दो छोर नहीजो मिल न सकेंगे जीवन मेंकुछ मै चल दूं कुछ तुम चल दोयह दूरी मिटे जीवनसाथी।कोई चीज कहाँ अधूरी हैउस जादूगर की रचना मेंमेरे होकर मन से मुझकोसम्पूर्ण करो जीवनसाथी।