कुछ हँसती हैं कुछ गाती हैं कुछ जीवन का रस दे जाती हैं कुछ देश प्रेम की बातें कर कर्तव्य की राह दिखाती हैं कुछ प्रेम के गीत सँजोती हैं कुछ दिल की मीत होती हैं करें नवयुग का जो सूत्रपात कुछ ऐसी कविता होती हैं। किन्तु! कर अंधकार को धूल धूसरित जो ज्योति नयन मे सोती हैं ढलते सूरज का दर्द लिए वो कवितायें भी रोती हैं ।
ममता के आँचल से वंचित कोई बालक भूखा रोता है दूर शहर की बस्ती मे किसी गलियारे मे सोता है, नन्हें नाजुक कंधे जब परिवार का बोझ उठाते हैं, कलम किताब न गुरुकुल कोई श्रम ही श्रम अपनाते हैं, जब सोनपरी के स्वप्नरात्रि की भी आँखें नम होती हैं, ढलते सूरज का दर्द लिए तब कवितायें भी रोती हैं।