तीज त्योहार

सती विरह में बैरागी हो
शिव समाधि में लीन हैं,
पार्वती है सती स्वरूपा
शिव तप में तल्लीन हैं।

क्यों न तुम पहचान रहे प्रभु
मैं ही शक्ति तुम्हारी हूँ,
स्मृतियों से विस्मृत हूँ
नियति लेख हारी हूँ।

जगत नियंता होकर भी
क्यों मुझको भूले हो स्वामी,
मेरी तप प्रतिष्ठा की क्या
बातें सब होंगी बेमानी।

तुमको पाने की जिद है
मैं सारे बंधन छोड़ूँगी,
जो न तुम अपनाओगे
मैं अपना व्रत न तोड़ूँगी।

पार्वती का तप कठोर है
शिव शम्भू को आना होगा,
दो प्रेमी युगलों की लय में
नियति को ढल जाना होगा।

मधुर मिलन की घड़ी आ रही
शिव की महिमा ऋतु गा रही,
चहक उठी हैं चारो दिशाएँ
दुख की काली घटा जा रही।

देवलोक से देव निहारे
व्रत अद्भुत सफल हुआ है,
नभ से सुमनों की वर्षा है
शिव के सम्मुख आई शिवा है।

रूप अलौकिक है अविकार
ज्यों प्रेयसी को पिया उपहार,
मधुर श्रावणी शुक्ल पक्ष में
प्रसिद्ध हुआ तीज त्योहार।