मन क्यों तेरे पीछे भागे

मन क्यों तेरे पीछे भागे
तू जीवन मे प्रीत सी लागे
तुझको देखूं या न देखूं
तू दिल की चौखट से झांके।

जुड़े हुए हम किन धागों में
सुर अलबेले हैं रागों में।
लाख हृदय हो दुख से द्वेलित
तुम संग सुख है अनुरागों में।

तुम पर दुख की काली छाया
हृदय विखंडित घायल काया
गले लगाकर तुझे छिपा लूँ
पर इतना अधिकार न पाया।

तुमको दुख में जलते देखा
खुद को घुट घुट मरते देखा
तुम प्रेम कहो या पागलपन
पागलपन में तड़पते देखा।

दया करो है मेरे ईश्वर
कृपा सिंधु हे प्रेम सरोवर
मेरे मन का त्रास मिटाओ
प्रेम पथिक बन राह दिखाओ

मैं प्रेम का मर्म न जानू
बाह्य जगत को ही पहचानूं
मुझको ज्योतिर्मय कर दो प्रभु
सत्य प्रेम करुणा भर दो प्रभु।