कितनी राहें

एक मोड़ पर कितनी राहें

एक दृष्टि में दृश्य हजारों

किधर चलें और किसको देखें

किसकी ओर फैलाये बाहें।

 

मेरे अंतस की चाह समझ

जो दिव्य दृष्टि दे जाता है।

हर भटकन पर हाथ पकड़

वो सही राह दिखलाता है।

 

जीवन की अभिलाषा में जब

विचलित होकर रोता हूँ।

तब उसकी पावन अनुकंपा से

अपने सम्मुख होता हूँ।