अंजाम देवेंद्र प्रताप वर्मा 'विनीत' मुझे ग़म है नही कुछ भी मुझे चिंता तुम्हारी हैगुनाहों के सफर में जो जिंदगी तुमने गुजारी है।उसे शिकवा नही कोई क़हर जिस पर तुम्हारा थामगर मैं हमसफर हूँ जो मुझे कुछ न गंवारा था। रूह उसकी मेरे ख्वाबो में आकर पूछती है रोजमेरा किस्सा अधूरा होगा पूरा क्या किसी भी रोज।उसे इंसाफ मिल जाये इबादत कर रहा हूँ मैंदर्द न जाने कितने हर रोज सह रहा हूँ मैं। जो है जान से प्यारा उसका काम क्या होगादेखना है मेरे मौला कि अब अंजाम क्या होगा।