अब ऐसे दस्तूर हुए हैं देवेंद्र प्रताप वर्मा 'विनीत' हम तुम यूँ मजबूर हुए हैंदेखो कितने दूर हुए हैं।आँखों तक आने से पहलेख़्वाब चकनाचूर हुए है।ख्वाहिशों ने गुनाह बक्शेवरना सब बेक़सूर हुए हैं।जल्दी जाने की ज़िद हैया वो कुछ मग़रूर हुए हैं।एक दम से ना-उम्मीद न होकुछ मसले हल जरूर हुए हैं।देखें क्या होता है आगेवादें तो भरपूर हुए है।जीने की खातिर मरना है‘विनीत’ अब ऐसे दस्तूर हुए हैं।