बेबसी

न काटें बिछे थे न कोई फूल खिला था
जिस राह पे चला अकेला ही चला था


जब भी मिला धूप का मंजर हसीं कोई
उस रोज बहुत जल्दी सूरज ढला था


ये आम बात है यही कहते हैं लोग सब
उन्हे खबर कहां कि दिल कितना जला था


चलते रहे फिर भी बिना टूटे बिना थके
आंखो मे तेरे नाम का सपना जो पला था


पाना था तुझको खुद को खोकर भी अबके बार
मेरी उम्मीद से जुदा मगर किस्मत का फैसला था


न पा सके तुझको न खुद को आज़मा पाये
बेबसी का ऐसा सख्त “विनीत” मंजर मिला था।