बेबसी देवेंद्र प्रताप वर्मा 'विनीत' न काटें बिछे थे न कोई फूल खिला थाजिस राह पे चला अकेला ही चला थाजब भी मिला धूप का मंजर हसीं कोईउस रोज बहुत जल्दी सूरज ढला थाये आम बात है यही कहते हैं लोग सबउन्हे खबर कहां कि दिल कितना जला थाचलते रहे फिर भी बिना टूटे बिना थकेआंखो मे तेरे नाम का सपना जो पला थापाना था तुझको खुद को खोकर भी अबके बारमेरी उम्मीद से जुदा मगर किस्मत का फैसला थान पा सके तुझको न खुद को आज़मा पायेबेबसी का ऐसा सख्त “विनीत” मंजर मिला था।