प्यार बांटता रहूँगा देवेंद्र प्रताप वर्मा 'विनीत' अपने वास्ते नया इल्जाम मांगता रहूँगाजब तक रहेगी नफरते मै प्यार बांटता रहूँगा।खौफ क्या देंगी मुझे लहरों की अंगडाइयांहोके तूफ़ान समंदर में नाचता रहूँगा।नजरों को नजर आया गर लड़खड़ाता आशियां कोईमै आगे आके उसका हाथ थामता रहूँगा।बच के जाएगें कहां नई उमर के बुलबुलेइंसानियत की डोर से मै सबको बांधता रहूँगा।मेरे दिल के जख़्म ग़र तुमको ख़ुशी देने लगे हैंदुआ में अपने वास्ते बस जख़्म मांगता रहूँगा।