मन काले से घबराता है तन गोरा ही क्यों भाता है मन काला है या गोरा है कुछ भेद समझ न आता है। दोष दृष्टि मे अथवा मन में या कोई गूढ़ कहानी है काले नैनों में इतराती क्यों सपनों की गोरी रानी है।
प्रश्न पूछता जो भीतर से वह किसका परिचायक है काला या गोरा क्या आखिर कहलाने के लायक है। तन को देखूं मन में झांकूँ उत्तर ना कोई मिलता है। प्रश्न संजोये यूं ही जीवन आगे बढ़ता चलता है।