मेहरबां हो गए देवेंद्र प्रताप वर्मा 'विनीत' फूल थे जो कभी बागवां हो गएथे अकेले चले कारवां हो गए।चंद सिक्के तिजोरी में क्या आ सजेजाने कितनों के वो जानेजाँ हो गए।भूल थी कुछ न बदलेगा जाने के बादघर कितने किराए के मकां हो गए।साजिश है यकीनन नेमत नही कोईपल हंसी के जो यूं मेहरबां हो गए।