सतगुरु मेरे हितैषी

सतगुरु मेरे हितैषी हैं, मैं सतगुरू का चेला
जागा जब गुरु ज्ञान से, तब जाना जग मेला।

सर्फ शब्द का ज्ञान का साबुन प्रेम नीर में धो डारी
कितनी ही चुनरी साफ करी हैं अब के मेरी धो डारी
भाग्य बड़े सतगुरु में पायो ऋण कैसे में उतार सकूं
हृदय में जब आनंद आयो क्यों झूठी मैं बात रखूँ।

दौलत मुझको प्रेम की मिल गई, जाऊंगा भरके थैला
सतगुरु मेरे हितैषी हैं, मैं सतगुरू का चेला।

झूला ऐसा पड़ा गगन में झूलू तो आनंद आए
ऊपर नीचे झूला होए मन मेरा हर्षाए
गगन से बूंद पड़े जब शीतल हृदय तृप्त हो जाए
होकर शांत हृदय तब मेरा गीत खुशी के गाए।

प्रेमरसी बनकर मैं प्रेमी भरूँ प्रेमरस बेला
सतगुरु मेरे हितैषी हैं, मैं सतगुरू का चेला।

सतगुरु की सेवा करके मैं हो जाऊं भंवर निहाल
सारे जवाब मिल गए अब मेरे बाकी ना कोई सवाल
शंका ने जब आकर घेरा मार्ग दिखाया सतगुरु ने मेरा
ना कुछ मेरा ना कुछ तेरा यह दुनिया है रैन बसेरा

पाकर खुश ‘धर्मवीर’ तुम्हे अब जाएगा संग प्रेम मेरा
सतगुरु मेरे हितैषी हैं, मैं सतगुरू का चेला।