माँ की भक्ति

माँ तुझको कभी न भूलूँ मैं
चाहें भूल जाऊँ दुनिया को
उपकार हैं मुझ पर बहुत तेरे
चुका सकूँ ना तेरे ऋण को।

कोई कष्ट अगर दे मुझको जग में
काली तू बन जाती है
चट्टान तू बनकर खड़ी रहे
इस दुनिया से लड़ जाती है
दुख दर्द अगर मुझ पर आए
अपने ऊपर सह लेती है
सहने की शक्ति तुझमें माँ
सहनशक्ति रूप तू लेती है।

माँ तुझको कभी न भूलूँ मैं
चाहें भूल जाऊँ दुनिया को
उपकार हैं मुझ पर बहुत तेरे
चुका सकूँ ना तेरे ऋण को।

प्रेम का धन है तेरे पास
और प्रेम की वर्षा तू करती है
बिन रंगे हुए इस जीवन में
तू रंग प्रेम के भरती है
प्रेम धन तू देकर के
धनलक्ष्मी तू बन जाती है
मैं धनी सेठ बन जाता हूँ
जब तेरे प्रेम की वर्षा होती है।

माँ तुझको कभी न भूलूँ मैं
चाहें भूल जाऊँ दुनिया को
उपकार हैं मुझ पर बहुत तेरे
चुका सकूँ ना तेरे ऋण को।

उँगली पकड़ा कर अपनी
पग रखकर मुझे चलाती है
अपनी मीठी मीठी बोली से
तू माँ कहना सिखलाती है
मैं सीखूँ तू सिखाती है
माँ सरस्वती तू बन जाती है
नौ देवी रूप तुझमें देखा
हर रूप में तू मुझको भाती है।

माँ तुझको कभी न भूलूँ मैं
चाहें भूल जाऊँ दुनिया को
उपकार हैं मुझ पर बहुत तेरे
चुका सकूँ ना तेरे ऋण को।

भगवान कृष्ण जो दुनिया में
अवतार कहाए जाते हैं
माता यशोदा प्रेम का सागर
प्रभु भी शीश झुकाते हैं
सम्मान करे ना जननी का
जग जननी को स्वीकार नहीं
आदर जननी का जो करता है
जग जननी का है भक्त वही।

माँ तुझको कभी न भूलूँ मैं
चाहें भूल जाऊँ दुनिया को
उपकार हैं मुझ पर बहुत तेरे
चुका सकूँ ना तेरे ऋण को।