समय का चक्र

आए ऋतु जब पतझड़ की,
पत्ते सारे झड़ जाते हैं।
फल फूल पत्तियाँ और छाया,
हरियाली के रंग भी जाते हैं॥

सूखा पेड़ ना भाए किसी को
दूर सभी हट जाते हैं
कोई ना पूछे बात पेड़ की
दूर दूर हो जाते हैं
ऐसे ही मानव जीवन में
जब पास न पैसे होते हैं
दूर-दूर वह करें किनारा
हाल चाल भी न पूछे जाते हैं।
आए ऋतु जब पतझड़ की,
पत्ते सारे झड़ जाते हैं।
फल फूल पत्तियाँ और छाया,
हरियाली के रंग भी जाते हैं।।

जब आए बसंत ऋतु उपवन में
तब चारों और हरियाली है
फल फूल पत्तियों और छाया से
पेड़ वही अब भारी है
पेड़ों की हरियाली देख देख
हरियाले पेड़ मन भाते हैं
यह तो चक्र ऋतु का है
जो बसंत पतझड़ आते हैं।
आए ऋतु जब पतझड़ की,
पत्ते सारे झड़ जाते हैं।
फल फूल पत्तियाँ और छाया,
हरियाली के रंग भी जाते हैं।

ऐसे ही दुख सुख जीवन में
सुख दुख का चक्र घूमता है
कभी कोई ठुकराता है
तो कभी कोई चूमता है
मात पिता पत्नी और बेटा
रिश्तो में स्वार्थ भारी है
पैसों के रिश्ते पैसों के नाते
पैसों की सब दुनिया दारी है।
आए ऋतु जब पतझड़ की,
पत्ते सारे झड़ जाते हैं।
फल फूल पत्तियाँ और छाया
हरियाली के रंग भी जाते हैं।

मिले नहीं जब आत्मज्ञान
तब तक इस चक्र में घूमेगा
पीकर मदिरा ख्वाबों की
हाथी सा मस्ती में झूमेगा
असली ऋतु तो जब आए
कोई मार्गदर्शक मिल जाता है
प्रकाश मार्ग में जब होय
तब मंजिल पर अपनी जाता है।
आए ऋतु जब पतझड़ की,
पत्ते सारे झड़ जाते हैं।
फल फूल पत्तियाँ और छाया
हरियाली के रंग भी जाते हैं।