सुबह शाम

सुबह शाम मुझे अजाबों ने घेरा है,
नाउम्मीद सांझ का, कहां सवेरा है।

चांद छुपा बादलों की ओट में,
दूर तक फक्त, अंधेरा ही अंधेरा है।

तन्हाई में बनी, जीने की सूरत,
मेरे मन मंदिर में, यादों का डेरा है।

दर्दों गम बन गए मेरे हमसफ़र,
खुशियों ने हाय मुझसे मुंह फेरा है।

शबे हिज्र ने दोनों को न बख़्शा,
जो हाल है तेरा, वहीं हाल, मेरा है।

जिस दिल में तुम रहा करते थे,
उस दिल में अब दर्द का बसेरा है।

जो मिला मुझे मेरे ही नसीब से,
इस बेवफ़ाई में, क्या दोष तेरा है।