आईना देखा धीरज साहू 'मानसी' खुद का ही तो अक्स लापता देखा,एक मुद्दत के बाद जो आइना देखा।कहीं, कभी, कोई आया नहीं नज़र,सुबह शाम करके खुदा खुदा देखा।खुद अपनी जिंदगी के साथ ही तो,करके रोज एक नया तजुर्बा देखा।धोखे फरेब के सिवा कुछ भी नहीं,क़रीब से हर रिश्ते का चेहरा देखा।असलियत, छुपाने से नहीं छुपती,यक़ीनन, लाख करके परदा देखा।याद क्या रहा बताना जरूरी नहीं,ज़माने में वक़्त, अच्छा बुरा देखा।