सरस्वती वंदना
वीणा पुस्तक धारिणी,
ज्ञान बुद्धि प्रदायिनी ।
गीत पुनीत सुछन्दन को,
स्वर-ताल के बीच संवारिये ।।
अज्ञान तम दूर कर,
उर में आनंद भर।
नाश कर कुबुद्धि का,
आज हमें तारिये ।।
पाहन पाषाण सम,
ज्ञान हीन जड़ हम ।
ज्ञान के गवाक्ष खोल,
चित्त को निखारिये।।
ज्ञान हीन मान हीन,
मंत्र तंत्र से विहीन ।
बालक अबोध जान,
कृपा दृष्टि फेरिये ।।
उत्तम विचार रहे,
दिव्य व्यवहार रहे ।
सुत हम तुम्हारे माता,
हमें ना विसारिये ।।
विनती का ध्यान कर,
उर को सुदिप्त कर।
सुबुद्धि प्रदान कर,
भव सागर से तारिये ।।
श्वेत वस्त्र धारिणी माँ,
जड़ मति तारिणी माँ ।
जड़ता मिटाकर मेरी,
सत बुद्धि भरिये ।।
चरणों के दास हम,
रहें ना उदास कभी ।
भाव भक्ति को प्रदान कर,
मातु जीवन संवारिये ।।
मेरी दुःख दूर कर,
दंभ चूर चूर कर।
विश्व रुपा विमला माँ,
उर में विराजिये ।।
चंदन है दास तेरा,
कर रहा है निहोरा ।
साजिये संवारिये माँ,
श्रद्धा भक्ति दीजिये ।।