सपनें मन में बुन

फूल कलियों को चुन, सपनें मन में बुन,
अपने प्रियतम की, सेज सजाने लगी।।

आ गयी सुहानी घड़ी, थी जिसकी इच्छा बड़ी,
आज बाहों में उनके, फिर समाने लगी।

खोल अपने नयन, बस निहारूं सजन,
प्रिय मनोहर छवि, हिय बसाने लगी।

छोड़ नाते सब आई, प्रीत उर में समाई,
किया था जो वादा कभी, वो मैं निभाने लगी।।

सीख जीवन के ढंग, रहूँ साजन के संग,
प्रेम भरी दुनिया मैं, फिर बसाने लगी।

छूटा बाबुल का प्यार, छूटा मैया का दुलार,
सारे रिश्ते-नाते तेरे, मैं अपनाने लगी।

सदा करती कामना, रहे निरोगी साजना,
सजा थाल निशदिन, माता मनाने लगी।

मिले कभी भी न दुख, मिले जीवन में सुख,
यही बिधाता से अर्जी, नित लगाने लगी।।