वासुदेव गिरिधारी कल्पना तिवारी 'दिव्या' वासुदेव गिरिधारी, लीला रचे मनुहारी,गीता ज्ञान कुरूक्षेत्र, सरिता बहाते हैं॥अर्जुन का मोह भंग, ओज भरा अंग अंग,कर में गांडीव लेके, प्रत्यंचा चढ़ाते हैं॥गुरू को प्रणाम कर, श्रद्धा के सुमन धर,सबसे प्रिय उन के, शिष्य कहलाते है॥मार्गदर्शक हो ऐसा, प्रभु नारायण जैसा, अधर्म पर धर्म का, ध्वज फहराते हैं॥