गर्मी
बडे़ दिनों के बाद हम, आए घूमन गाँव।
तपती धरती आग सी, जल जाते हैं पाँव॥
जामुन आम अभी समय, हुई नहीं बरसात।
बारिस बिन फल ना पके, बढे़ बेचैनी रात॥
फल सूखे सूखे गिरे, रहती नहीं मिठास।
कितना यतन करे सभी, मिटती ना है प्यास॥
पानी कितना भी पिये, सूखा रहता कंठ।
खाया पिया ना जाय कुछ, सूख के सब हों ठंठ॥
गर्मी में ठंडी भली, जाडा़ गर्मी ठीक।
संतुष्ट कब मानव हुआ, कबहु कहे नहि नीक॥
बाहर भीतर दौडते, बच्चे हैं बेहाल।
कहती बहुए सास से, ले जाऊं ननिहाल॥
आठ बजे ही दोपहर, सा होता आभास।
बारह बजते हो विकट, कड़ी धूप एहसास॥
गिरे पसीना माथ से, जाय अंग सब भीग।
भोजन जब पचता नहीं, खाए नीबू हींग॥
इलेक्ट्राल सब जन पियो, पानी पियो अघाय।
निरोग रहने का यही, सब से सरल उपाय॥
तुलसी अर्क निकाल कर, दस पत्ती का रोज।
पाचन रहता है सही, पियो सरल है खोज॥