पल पल झुलसाती है तपिश बढ़ती है जलन बढ़ जाती है पीपल के पत्तों सी छांव को ढूंढती है गर्म रेत सी जिंदगी।
पल पल झुलसाती है कोना मधु मास का तलाशती है तपिश जब बढ़ जाती है माँ के आंचल को तलाशती है गोद में उनके सर रख कर उस सुकून को महसूस करती है गर्म रेत सी जिंदगी।
जब पल पल झुलसाती है वो एक सुकून का कोना कहां मिलेगा जो तपिश को कम कर जाती है गर्म रेत सी जिंदगी।