माँ की ममता

माँ की ममता सबकी सुनती
पर उसकी कोई नहीं सुनता
आह ! कितना दर्द सहती है वो
जब तुझको नौ महीने रखती है वो !
उस पर भी उफ़ नहीं करती
माँ बनने के गौरव से मुस्काती है
उस पीड़ा को भूल जाती है
जब तुझको गोद में पाती है
फ़िर तू जब उसको न समझे तब
हर पल, हर दिन मर जाया करती है।
आह ! कैसी ये माँ की ममता
हर रूप में ढल जाती है
तुम उसको इग्नोर करके आगे बढ़ जाते हो,
क्यों नहीं उस दुख को तुम समझ पाते हो !

तुम बड़े हुए वो हो गई छोटी
इसलिए दुत्कारते हो
माँ की ममता को तुम फिर
समझ नही पाते हो।
आह ! उस वेदना को अनुभव करना
नौ महीने की पीड़ा को सोचना
प्रसव वेदना से नही घबराई जो
तुम क्या उसको ठुकराओगे।
माँ की ममता को तुम कभी
समझ नही पाओगे
तुम कभी समझ नही पाओगे।

रखोगे गर दिल में उसको
दुख कभी न पाओगे
रहोगे आबाद हमेशा,
जो उसका दिल न दुखाओगे
जो उसका दिल न दुखाओगे ।