ऐ दिल तू रोता है क्यों बार बार

ऐ दिल तू रोता है क्यों बार बार
तेरे जीवन में भी कभी आएगी बहार
जो हारे न हिम्मत, संघर्ष करे हजार
उसकी भी सुनता है ऊपर वाला एक बार।

मैं हरदम निभाती रही खुद को
सपने आंखों में लिए हजार
समझा लिया दिल को हमने
दर्द आंखों से ओझल किए कई बार
जिन्दगी की जिल्लतों को झेला था सौ बार
रातों की नींद उड़ी, और सपने हुए तार तार।

ऐ दिल तू रोता है क्यों बार बार
तेरे जीवन में भी कभी आएगी बहार।

कतरा कतरा पतझड़ में खिलेगा वसंत भी एक बार
नई पत्ती नई कोंपल से खूबसूरत हुआ गुलनार
सींचेगा बागवान,
सजाएगा सतरंगी सपने आंखों में हजार
“कंचन” अपनी खुशबू से कर दे
सबको आबाद।