किताबों की दुनिया

न जाने क्यों जब भी तन्हाइयां
घेर लेती हैं मुझे
तब किताबों की दुनिया मेरी होती है
न जाने क्यों दिल जब बेजार होता है
तब किताबों की दुनिया मेरी होती है
हर पन्ने पर उकेरती हूँ वो दर्द, वो अनुभूति
जब भी अकेली होती हूँ तभी,
किताबों की दुनिया मेरी होती है
ये साथ देती हैं मेरा,
संबल प्रदान करती हैं
जीने की जिजीविषा अंदर मेरे
ये किताबें ही जगाती हैं
पल पल का किस्सा बुनती हैं ये मेरे साथ
ये किताबें ही हैं जो गुनगुनाती हैं
बदली में छुपे हुए चांद को देख कर
अकसर ही याद दिलाती हैं
तू है तो हम हैं,
हम तेरे ही संग हैं
अपने आप से बात करना
ये किताबें ही सिखाती हैं
न जाने क्यों जब भी अकेली होती हूँ
तभी ये किताबें मेरे सामने चली आती हैं
ये मुझसे रूबरू होती हैं, मेरा मन भी
बांट लेती हैं।
ये किताबें हैं दोस्तों
जो डूब गया इनमें
तो कई किस्से भी बयां कर जाती हैं।