सच्चे भाई

काश !
वो सच्चे भाई बन पाते
अपने ही घर आंगन की
बेटी का दर्द समझ पाते।

काश !
वो अपनापन दिखलाते
अपनी बहनों का दिल रख पाते
सच्चे रिश्ते वो दिखलाते।
बेटियां उनके आंगन में भी हैं
सच का पता वो लगाते।

काश !
स्नेह से जुड़ जाते
नहीं मांगती कोई बहन
धन दौलत, रुपया गहना
चंद उपहार सजाते
तुम भी भाई गर बन पाते।
सच का रिश्ता वो निभाते
सहज सुमन सबके खिल जाते
नादां हैं बहुत वो अपनी त्रुटियां
नहीं देख पाते।
ब्याहेंगे जब वो बेटियां
देखेंगे और झेलेंगे वो आइना
बहन, बेटी घर आंगन की
सबकी होती लाडलियां
कड़वी, मीठी,यादें हैं वो
वो अदद मायका दे पाते।

काश !
हम सब भूल पाते
बचपन की वो रोटियां
मिलकर के सबने तोड़ी जहाँ
वो उपकार वो भुला पाते।
बहनों के साथ जो हुआ
बेटियों के साथ न करना
जग के सारे भाइयों
सुखी तुम सदा रहना।
घर आंगन की बेटी को तुम
दुःख कभी न देना
तुम दुःख कभी न देना॥