मुलाक़ात होने दो

सांसों-सांसों में बात होने दो
खुल के अब मुलाक़ात होने दो।

कौन अंजाम की करे परवाह
इश्क की वारदात होने दो।

टूट जाओ हमारी बाहों में
दिलनशीं सी हयात होने दो।

जाने-जाने की रट लगाओ ना
शाम होने दो रात होने दो।

‘शहरयार’ इतनी बेक़रारी क्यों
थोडा सा एहतेयात होने दो।