कलाम करो

अमल से अपने सभी सुन्नतों को आम करो
कोई मुंह फेर ले तो भी उसे सलाम करो।

45 डिग्री में ही इस क़दर बेचैन हो तुम
हश्र में साये का अभी से इंतज़ाम करो।

किसी के बाजु़ओं में टूटने से बेहतर है
काम ऐसे हों कि तुम क़ब्र में आराम करो।

वो अपने जिस्म से यूं रूह तक महक उठे
किसी के दिल में कभी इस तरह क़याम करो।

झील आँखें, गुलाब चेहरा और शामें अबरू
अब ऐसी शायरी और ग़ज़लों को हराम करो।

किसी के काम आए चल दिए जताए बिना
हम ने सीखा ही नही ढोल पीटो, नाम करो।

गुलों के भेष में मिल जाएं अगर नागफनी
‘शहरयार’ कांटों के लहज़े में ही कलाम करो।