कलाम करो मोहम्मद शहरयार अमल से अपने सभी सुन्नतों को आम करोकोई मुंह फेर ले तो भी उसे सलाम करो।45 डिग्री में ही इस क़दर बेचैन हो तुमहश्र में साये का अभी से इंतज़ाम करो।किसी के बाजु़ओं में टूटने से बेहतर हैकाम ऐसे हों कि तुम क़ब्र में आराम करो।वो अपने जिस्म से यूं रूह तक महक उठे किसी के दिल में कभी इस तरह क़याम करो।झील आँखें, गुलाब चेहरा और शामें अबरूअब ऐसी शायरी और ग़ज़लों को हराम करो।किसी के काम आए चल दिए जताए बिनाहम ने सीखा ही नही ढोल पीटो, नाम करो।गुलों के भेष में मिल जाएं अगर नागफनी‘शहरयार’ कांटों के लहज़े में ही कलाम करो।