जिसके अंदर सब्र है मोहम्मद शहरयार हर तरफ़ मकरो-फरेब, ज़ोरो-जब्र हैबस वही इंसां है जिसके अंदर सब्र है।रास्ते की लज्ज़तों में डूब के ऐ यारभूल ना जाना कि तेरी मंज़िल क़ब्र है।ज़ीस्त की दुश्वारियों में कैसे लिखूं मैंकि होंठ तेरे फ़ूल हैं और ज़ुल्फ अब्र है।झूठ पे सर काटेंगे पर सच के वास्तेलीजिये ये जान मेरी पेश-ए-नज़्र है।ज़ालिमों की भीड़ से तू ख़ौफ ना खानाफ़तह-ए-ईमां को मिसाले-जंगे-बद्र है।दोस्ती न्यामत से कम नहीं है ‘शहरयार’अच्छा दोस्त ज़िन्दगी में क़ाबिले-क़द्र है।